गेहूं मे पहले पाणी पर डाले यह 2 खाद, DAP और युरीया भुल जाओगे..
गेहूं की फसल में पहला पानी देने का सबसे सही समय बिजाई के 21 दिन के आसपास होता है। किसान 18 दिन से लेकर 25 दिन के बीच पहला पानी लगा सकते हैं। इस समय पानी देना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्राउन रूट इनिशिएशन (CRI) यानी शिखर जड़ें निकलने की अवस्था होती है। ये नई जड़ें ही पौधे के लिए पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं। यदि इस चरण में पानी देने में देरी की जाती है, तो कल्लों का फुटाव (टिलरिंग) कम हो जाता है, जिससे पैदावार में भारी कमी आ सकती है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि 10-12 दिन पर पानी देने से फसल में पीलापन आ सकता है, इसलिए सही समय पर पानी देना ही सबसे ज़रूरी है।
पहले पानी के साथ सही खाद और उनकी मात्रा
पहले पानी पर यूरिया के साथ अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाना चाहिए ताकि कल्लों का फुटाव अधिकतम हो सके। यूरिया की मात्रा 30 से 35 किलोग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त होती है। यूरिया के साथ, किसान जिंक सल्फेट (21% या 33% वाला, 5-7 किलोग्राम), 90% WDG सल्फर, और सीवीड एक्सट्रैक्ट (जैसे सागरिका) का उपयोग कर सकते हैं। ये सभी खाद जड़ों के विकास और फुटाव को बढ़ाने में मदद करती हैं। एक महत्वपूर्ण बात जिसका ध्यान रखना चाहिए वह यह है कि जिंक सल्फेट को फास्फोरस युक्त खादों (जैसे डीएपी या एनपीके) के साथ मिलाकर नहीं डालना चाहिए, क्योंकि ये दोनों आपस में विपरीत प्रतिक्रिया करते हैं और उनका असर कम हो जाता है। अगर आपको दोनों की ज़रूरत है, तो एक खाद पहले पानी के साथ और दूसरी खाद दूसरे पानी के साथ डालनी चाहिए।
खाद और पानी डालने का सही तरीका
खाद को सही तरीके से डालना भी ज़रूरी है। यदि आप फव्वारा विधि (स्प्रिंकलर) से सिंचाई कर रहे हैं, तो पहले खाद बिखेर दें और फिर पानी चलाएं। यदि आप खुला पानी (नहर या ट्यूबवेल से फ्लड इरीगेशन) दे रहे हैं, तो खाद को पानी की क्यारी भरने के बाद या जब पानी आधा सोख जाए तब डालना चाहिए, ताकि वह एक समान रूप से घुल कर पूरे खेत में पहुँचे। खुले पानी से होने वाला एक बड़ा नुकसान यह है कि मिट्टी जड़ों के ऊपर सख्त (टाइट) हो जाती है, जिससे नई कोमल जड़ों को फैलने में दिक्कत आती है और गेहूं की बढ़वार रुक सकती है या पीलापन आ सकता है। इसलिए, संभव हो तो पहले पानी के लिए हल्की सिंचाई या फव्वारा विधि का उपयोग करना सबसे बेहतर माना जाता है। इस चरण में डीएपी, सल्फर और जिंक जैसी खादों की पूर्ति कर लेना आवश्यक है, क्योंकि फसल की अच्छी पैदावार के लिए बेसल डोज़ का पूरा लाभ लेने का यह अंतिम अवसर होता है।