किसान भाइयों को अक्सर रबी और खरीफ दोनों फसलों के समय यूरिया खाद की कमी और लंबी लाइनों का सामना करना पड़ता है। यह आपूर्ति संकट हर साल देखा जाता है। हालांकि, वक्ता की पहली सलाह यही है कि अगर आपको यूरिया थोड़ा दूर जाने या कुछ देर लाइन में खड़ा होने पर भी मिल रहा है, तो आपको उसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए। यूरिया (46% नाइट्रोजन) सबसे कम कीमत पर बेहतरीन परिणाम देता है।
अगर यूरिया बिल्कुल भी उपलब्ध न हो, तो आप कम खर्च वाला, बल्कि लगभग शून्य खर्च वाला, एक जैविक नुस्खा अपना सकते हैं। इसके लिए, देसी गाय का 2 किलो दूध लें और उसे मिट्टी के बर्तन में गर्म करें। उसमें तांबे का कोई पात्र (लोटा/बर्तन) और दही जमाने के लिए जामन डालकर, बर्तन को एयरटाइट करके 7 से 10 दिनों के लिए रख दें।
जब इसे खोलें, तो तांबे के पात्र को 3 किलो पानी से धो लें। इस पानी को जमे हुए दूध (दही) के साथ मिलाकर 150 से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। यह मिश्रण न केवल नाइट्रोजन की कुछ कमी पूरी करता है, बल्कि फफूंदनाशक और कीट नाशक (रस चूसने वाले कीटों के लिए) के रूप में भी अद्भुत काम करता है।
यूरिया के अन्य रासायनिक विकल्पों में अमोनियम सल्फेट (21% नाइट्रोजन) और कैल्शियम नाइट्रेट (15% नाइट्रोजन) शामिल हैं, लेकिन ये यूरिया से काफी महंगे हैं। डीएपी खाद (18% नाइट्रोजन) भी एक विकल्प है, पर ऊपर से डालने पर फॉस्फोरस का उपयोग नहीं हो पाता।
एक प्रभावी रासायनिक तरीका यह है कि, अगर यूरिया नहीं मिल रहा, तो प्रति एकड़ 20 किलो अमोनियम सल्फेट जमीन में डालें। फिर, 2 किलो यूरिया और 1/2 किलो जिंक सल्फेट (21%) का घोल 100 से 120 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। यह विधि फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति के साथ-साथ जिंक की कमी को भी पूरा कर देती है। इसके अलावा, एनपीके 19:19:19 या 20:20:20 का उपयोग भी अच्छे परिणाम दे सकता है।